सरयू की उत्पत्ति कैसे हुई?
सरयू की उत्पत्ति के संबंध में ऐसी कथा प्राप्त होती है कि एक बार राजा इक्ष्वाकु ने वशिष्ठ जी से यह इच्छा प्रकट की की इतनी बड़ी अयोध्या में कोई भी नदी नहीं है जिससे जनमानस को बहुत बड़ी परेशानी होती है, महाराज कोई उपाय कीजिए।
राजा इक्ष्वाकु की बात सुनकर वशिष्ठ जी ने नंदिनी से कहा, नंदिनी कोई उपाय बताओ, वशिष्ठ जी के प्रश्न के उत्तर में नंदिनी ने कहा कि-
महाराज एक बार भगवान बैकुंठ में विराजमान थे उसे समय भगवान विष्णु के दर्शन के लिए भगवान शंकर और पार्वती वहां पर पहुंचे उस समय वहां पर अन्य देवता ब्रह्मा नारद इंद्र आदि भी उपस्थित थे । सभी को प्रसन्न देखकर शिवजी मग्न होकर के नाचने लगे नारद जी वीणा बजाने लगे इस तरह से सभी के सभी प्रसन्न मुद्रा में हो गए।
शिव जी के नृत्य को देखकर विष्णु जी अधिक प्रसन्न हुए और शिव जी से वरदान मांगने को कहा इस पर शिव जी ने विष्णु जी से भक्ति मांगी।
शंकर जी के प्रेम को देखकर विष्णु जी ने के नेत्र में खुशी के आंसू आ गए वह आंसू जब गिरने की स्थिति में हुआ तो ब्रह्मा जी ने उसे अपने कमंडल में रोक लिया।
वहीं से आप उन्हीं से कामना करके नदी को प्राप्त कर सकते हैं यह बात नंदिनी ने वशिष्ठ वशिष्ठ जी को बताई।
9000 वर्ष ब्रह्मा की तपस्या करने पर ब्रह्मा जी के प्रसन्न होने की स्थिति में वशिष्ठ जी ने ब्रह्मा जी को अपनी इच्छा सुनाई। तब ब्रह्मा जी ने वहीं विष्णु के नेत्रों का जल कमंडल से पृथ्वी पर गिरा दिया । वह जल सुमेर पर्वत पर गिरा और वहीं पर बहने लगा।
पृथ्वी तक वह जल नहीं आया, तब ऐरावत हाथी ने अपने दांतों की प्रहार से पर्वत को काटा जिससे वह जल पृथ्वी की ओर गिरा, सुमेर पर्वत से निकलकर वह जल हरी धाम के निकट मानसरोवर में समा गया।
मानसरोवर ब्रह्मा जी के मन से उत्पन्न हुआ है अब वशिष्ठ जी ने पुनः बहुत दिनों तक तपस्या की और तब भगवान पुनः प्रकट हुए और उन्होंने मानसरोवर को हिचकोलने को कहा अथक प्रयास के बाद वह जल वहां से निकला, और वशिष्ठ जी ने उसे प्राप्त कर लिया, और अयोध्या लेकर आये यही सरयू नदी हुई।
विष्णु जी के नेत्र से उत्पन्न होने के कारण सरयू का एक नाम नयनजा भी है, तथा वशिष्ठ जी के द्वारा पृथ्वी पर लाए जाने के कारण सरयू का एक नाम वशिष्ठी भी है। इस तरह से सरयू के तीन नाम हुए सरयू नयनजा और वशिष्ठी।